Hindu society in Bangladesh

Editorial: बांग्लादेश में हिंदू समाज को सांस लेने से क्यों रोक रही सरकार

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Hindu society in Bangladesh

Why is the government stopping the Hindu community from breathing in Bangladesh: बांग्लादेश में एक निर्वाचित सरकार के जबरन पतन के बाद जिस प्रकार के हालात बन रहे हैं, वह देश के निष्पक्ष लोगों के लिए तो बेहद चिंताजनक हैं ही, दुनिया और खासकर भारत के संदर्भ में बेहद गंभीर हैं। बांग्लादेश की स्थिति दिन प्रति दिन खराब से खराब होती जा रही है। देश के अंदर अल्पसंख्यक समाज की स्थिति घोर चिंताजनक है और एक अंतरिम सरकार ऐसे फैसले ले रही है, जोकि बेशक बहुसंख्यक समाज के हित में हों, लेकिन अल्पसंख्यक यानी हिंदू और अन्य के प्रति पूर्णतया अन्यायपूर्ण हैं। अंतरिम सरकार का अजान और नमाज के वक्त हिंदुओं पर कोई भी पूजन कार्य करने पर प्रतिबंध पूरी तरह से अलोकतांत्रिक और भेदभावपूर्ण है।

यह कितना विडम्बनापूर्ण है कि बांग्लादेश को अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देशों ने अपना मोहरा बना लिया है, उन्हें शेख हसीना सरकार को अपदस्थ करके जो हित साधने थे, वे उन्होंने साध लिए लेकिन इस देश में रह रही जनता और खासकर अल्पसंख्यक समाज के संदर्भ में कोई आवाज नहीं उठाई है। यह सुनने में ही कितना पक्षपाती लगता है कि एक सरकार जिस पर पूरे देश की जनता की जिम्मेदारी है, वह बहुसंख्यक यानी मुसलमानों के संदर्भ में ही सोच रही है और उन्हें ही आगे बढ़ाने और उनके हितों को सुरक्षित कर रही है। एक देश के अंदर धार्मिक स्वतंत्रता क्या इस प्रकार से कायम होगी कि बहुसंख्यकों के पूजा के वक्त बाकी धर्म के लोग अपने मुंह पर पट्टी बांध कर बैठ जाएं और इसका इंतजार करें कि वे अपनी आराधना पूरी कर लें, इसके बाद उनकी बारी आएगी। यह भी आश्चर्यजनक है कि सरकार हिंदुओं की निगरानी कर रही है और उसने दुर्गा पूजा के दौरान हिंदू मंदिरों में मदरसा छात्रों की तैनाती का आदेश भी दिया है।

अंतरिम सरकार के इस फैसले को तुगलकी फरमान ही कहा जाएगा। गौरतलब यह है कि यदि कोई इन नियमों का उल्लंघन करते हुए पाया जाता है तो पुलिस उसे बगैर किसी वारंट के गिरफ्तार कर लेगी। यानी कोई दलील नहीं, कोई वकील नहीं और संबंधित व्यक्ति सीधे जेल में होगा। क्या यह यकीन के साथ कहा जा सकता है कि बाकी मामलों में देश के अंदर इतना लोकतंत्र बचा है कि वहां किसी की सुनवाई होगी। हालिया दंगों के दौरान हिंदुओं के घरों को लूटा गया है, जलाया गया है, महिलाओं पर अत्याचार हुए हैं। लोगों को मारा गया है और उन्हें देश छोड़ने को मजबूर किया गया है। उनके काम और कारोबार उनसे छीन लिए गए हैं, उनके मंदिरों पर धावा बोलकर सोची-समझी साजिश के तहत भगवान की मूर्तियों को अपमानित किया गया है और भयंकर क्षति पहुंचाई गई है।

इतना कुछ होने के बाद अंतरिम सरकार के प्रमुख एक मंदिर में नंगे पैर जाकर वहां हिंदू समुदाय के लोगों के समक्ष उनकी स्वतंत्रता और अधिकारों को बचाने का ड्रामा रचकर लौट आए। उस समय हिंदू समाज को आश्वस्त किया गया था कि उन्हें पूरी सुरक्षा प्रदान की जाएगी लेकिन अब अजान और नमाज के समय हिंदुओं को चुप साध कर बैठने और दुर्गा पूजा के दौरान प्रयोग में लाई जाने वाली हिल्सा मछली के निर्यात पर रोक लगाकर बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने यह संदेश दिया है कि उसके मन में भारत के प्रति गहरा दुराभाव है और निकट भविष्य में यह और बढ़ने की पूरी आशंका है।  

बांग्लादेश के लोगों ने लोकतंत्र का जैसा उपहास उड़ाया है, वह विचित्र एवं दुर्भाग्यपूर्ण है। पूरी दुनिया ने बांग्लादेश की राजधानी ढाका में जो तस्वीरें देखी हैं, वे बेहद दुखद और अराजकता का प्रतीक है। इससे पहले अफगानिस्तान, श्रीलंका जैसे देशों में दुनिया ने इन हालात को देखा और अब बांग्लादेश के लोगों ने भी अपनी तथाकथित आजादी को हासिल करने के लिए न केवल देश के निर्माता बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की मूर्तियों, चित्रों को तोड़ कर उनको अपमानित किया है, अपितु लोकतांत्रिक प्रक्रिया से लगातार चौथी बार देश में सरकार बनाने वाली अवामी लीग की नेता पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया। अब पूछा जा रहा है कि बांग्लादेश का भविष्य क्या होगा। मौजूदा परिस्थितियों में कोई भी इसका आकलन करके नहीं बता सकता, हालांकि इन हालात ने भारत के समक्ष नई चुनौतियां पैदा कर दी हैं।

निश्चित रूप से बांग्लादेश को कट्टरपंथी सोच के कोटर से बाहर आने की जरूरत है। जाति और धर्म अपनी जगह हैं, लेकिन वे अगर सत्ता के प्रभाव में आ जाएं तो मुश्किलें खड़ी होना लाजमी है। बांग्लादेश को एक धर्म प्रधान नहीं अपितु मानवता प्रधान देश बनने की जरूरत है। इसी से उसकी तरक्की की राह खुलेगी। 

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